Saturday, May 13, 2017

द मैरिज प्रोपोज़ल : अरण्य में कहकहे तलाशता एक हास्य





रंग संस्कार थियेटर ग्रुप द्वारा आयोजित “समर थियेटर फेस्टिवल” की प्रथम प्रस्तुति के रूप में दिनांक 12 मई 2017 को एंटोन चेखव द्वारा लिखित, देशराज मीना द्वारा रूपांतरित तथा जयपुर के धीरेन्द्र पाल सिंह द्वारा निर्देशित नाटक “द मैरिज प्रोपोज़ल” का मंचन किया गया। इस नाटक में धीरेन्द्र पाल, योगेन्द्र अगरवाल व विमला डागला ने अभिनय किया। इस नाटक की समीक्षा में बहुत सारी बाते हैं जो कही जा सकती हैं किन्तु बहुत सी ऐसी बाते हैं जो इस नाटक से बाहर हैं और कही जानी चाहिए। ये नाटक से सीधे जुड़ी न होते हुए भी नाटक को प्रभावित तो करती हैं। इसलिए उन्हें समीक्षा की जद में आना चाहिए।
नाटक के विषय में एक ही बात कह कर बात खत्म की जा सकती है कि यह नाटक दरअसल अरण्य में रचा गया एक हास्य है। दरअसल नाटक  में ह्यूमर तो  है लेकिन सामने से कोई कहकहा नहीं सुनाई देता। दरअसल खाली कुर्सियों से क़हक़हों की उम्मीद बेमानी है।  इस नाटक के कलाकारों के उत्साह के ग्राफ में उतना ही अंतर था जितना कि एक हाउसफुल औडिटोरियम और खाली कुर्सियों के समक्ष आनुपातिक रूप से होता है। रंगमंच एक जीवंत माध्यम है उसे मंच और दर्शक को अलग करके देखा नहीं जा सकता। कलाकार दर्शक से त्वरित रेस्पोंस की उम्मीद करता है। जब उसे वह नहीं मिलता तो उसके घुटनो से जान निकल जाती है। फिर वह तमाम नाटक में अपने कंधों पर ही अभिनय को ढोता रहता है। दर्शकों का यह तात्कालिक रेस्पोंस नकारात्मक व सकारात्मक दोनों होता है। जब यह नकारात्मक होता है तो वह कलाकार को और दम लगानेकी चुनौती देकर प्रोत्साहित करता है। जब यह सकारात्मक होता है तो अभिनेता में पंख लगा देता है। मुश्किल तब आती है जब यह फीडबैक आता ही नहीं। लगभग यही कल की प्रस्तुति में हुआ।  
बहुत बड़ी विडम्बना है कि शहर की लगभग साढ़े तीन लाख आबादी में से मुश्किल से 50 दर्शक नहीं जुट पाए। अलवर शहर में लगभग 30 नाट्य संस्थाओं से मुट्ठी भर प्रतिनिधि भी नहीं थे। अलवर थियेटर आर्टिस्ट एसोसिएशन के नाम से व्हटस एप्प पर संचालित ग्रुप में 103 रंगकर्मी (?) नामांकित हैं उनमे से कल के नाटक में उपस्थिति दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू  पाई। यह तब है जबकि इसी वाट्स एप्प समूह में इस इस ग्रीष्म नाट्य उत्सव की सूचना लगभग एक पखवाड़े से  रोज प्रसारित की जा रही है। यूं तो ग्रुप में सदस्यों की सक्रियता देखते बनती है। दिन भर मैसेज की इनबॉक्स में धारासार वर्षा होती है। अधिकारों, दायित्वों व आंदोलनों की बाते होती हैं। लेकिन जब भौतिक रूप से उपस्थिति की बात होती है तो वहाँ पर एक चुप्पी ही पहुँचती है। इस आभासी सक्रियता को पहचाना जाना चाहिए। आभासी सक्रियता किसी काम की नहीं हैं। अलवर में तीन-चार तरह के तरह के रंगकर्मी हैं।
·        पहले दर्जे में वे हैं जो लगातार नाटक कर रहे हैं।
·        दूसरे दर्जे में वे हैं जो प्रक्रिया में हैं लेकिन उनके नाटक मंच तक नहीं पहुँच रहे हैं।
·        तीसरी श्रेणी वे हैं जो सक्रिय नहीं हैं किन्तु नाटक देखने जरूर जाते हैं।
·        चौथे दर्जे में  वे हैं जो अतीत के स्मृतियों के जमाखर्च से अभी तक काम चला रहे हैं।
एक श्रेणी और है जो केवल वाट्स एप्प पर आभासी सक्रियता दर्शा रहे हैं। इस छद्म सक्रियता को पहचानना होगा।
इसी वाट्सएएप्पी सक्रियता से शहर में औडिटोरियम की मांग को लेकर आंदोलन चलाया जा रहा है। अजीब विडम्बना है कि औडिटोरियम की निशुल्क मांग को लेकर आंदोलन चलाया जाए और जब औडिटोरियम में कोई नाटक हो तो वहाँ नाटक देखने न जाया जाए। इससे यही निगमित होता है कि दरअसल रंगकर्मियों को औडिटोरियम की जरूरत ही नहीं? या फिर वे औडिटोरियम की मुफ्त में उपलब्धता के बाद ही नाटक करने या देखने जाएंगे! समूह में सभी बाते होती हैं लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि मैं नाटक देखने आ रहा हूँ या नहीं आ सकता...  नाटक के मंचन के पश्चात ग्रुप में तस्वीरें डाली गईं, अखबार की कतरन डाली गईं। 17 घंटे के बाद किसी की कोई प्रतिक्रिया नहीं है.... यह सायास या अनायास चुप्पी शंकित करती है कि कहीं हमारी सक्रियता आभासी तो नहीं। खैर, इस समर उत्सव में दो पहल मजबूती से हुई हैं –
·        नाटक को समय से शुरू करना
·        टिकट से नाटक दिखाना
यह नाटक समय पर शुरू कर दिया गया था। जो भी दर्शक आए उन्हे दिखाया गया। यह एक अच्छी पहल है। ये नए दर्शक निर्माण की और उठाया गया कदम है। जो दर्शक आए उनकी लिटरेसी हो गयी कि भविष्य की प्रस्तुतियों में टाइम का महत्व है।
इस बार नाटक का टिकट 50/- का रखा गया था। थियेटर एसोसिएशन के कलाकारों को 50% की छूट थी। इस छूट का लाभ नगण्य रूप से ही लिया जा सका। लेकिन प्रेक्षाग्रह में प्रविष्टि टिकट से थी यह बात महत्वपूर्ण है। शहर के रंगकर्मियों को भी अब मुफ्त की प्रवृति को बदल कर काउंटर से टिकट लेना सीखना चाहिए। पुराने व वरिष्ठ रंगकर्मियों को अब आमंत्रण पत्रों की घर पर प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। उन्हे मीडिया से सूचना पाकर प्रेक्षागृह तक पहुँचने में अपना मान समझना चाहिए। घर-घर आमंत्रण पत्र देने में रंगकर्मी का बहुत समय, ऊर्जा व संसाधन जाया हो रहे हैं यह समझना चाहिए।
बहरहाल, आज शंकर शेष द्वारा लिखित व शिव सिंह पलवात द्वारा निर्देशित नाटक “आधी रात के बाद” का मंचन है। स्थान वही है – महावर औडिटोरियम समय ठीक 7.30 पीएम।
बड़ी संख्या में पहुँच कर ग्रीष्म नाट्य उत्सव का आनंद लें।
(कृपया अपनी टिप्पणी अवश्य दें। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो शेयर ज़रूर करें।  इससे इन्टरनेट पर हिन्दी को बढ़ावा मिलेगा तथा  मेरी नाट्यकला व  लेखन को प्रोत्साहन मिलेगा। ) 


दलीप वैरागी 
09928986983 


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