Sunday, May 3, 2015

कविता शिक्षण : एक अनुभव

यह सबसे कठिन समय नहीं है
यह उस पाठ का नाम है जो अगले दिन कक्षा आठ में पढ़ाया जाना था। मैंने शिक्षिका से कहा, “कल हम इसी पाठ पर मिल कर काम करेंगे।आठवीं कक्षा की हिन्दी की किताब साथ लेकर केजीबीवी से बाहर आ गया। अपने कमरे में आकर देर तक जया जादवानी की इस कविता के बारे में सोचता रहा। कविता की पहली लाइन कहती है नहीं, यह सबसे कठिन समय नहीं ...क्या सचमुच यह कठिन समय नहीं जबकि मेरा यह कविता शिक्षण का पहला मौका है। कहानियाँ सुनाई भी बहुत और सिखाई भी ... और कविता? सुनाने का अनुभव तो है लेकिन क्या सुनाना भर काफी रहेगा? इस समय को कठिन जान अब फिर कविता को देखता हूँ तो वह अब और भी कठिन जान पड़ती है। कविता को पढ़ जाता हूँ पूरा एक बार... दुबारा फिर पढ़ता हूँ तो मन में अर्थ तैरने लगते हैं और धीरे से भावनाओं की उंगली थामने लगते हैं। बावजूद इसके रह जाते हैं कुछ धुंधलके भी। जो अर्थ मैंने पकड़ा है क्या लड़कियों का भी वही अर्थ होगा। अर्थों का कुहासा अभी भी मेरे मन में है जो मुझे बर्दाश्त नहीं हो रहा, क्या लड़कियां भी उसे बर्दाश्त कर पाएँगी? जो मैं समझ रहा हूँ क्या वही कवयित्री का अभीष्ट है? खैर, कल देखा जाएगा। एक आश्वस्ति मन में थी कि पहली बॉल तो टीचर को ही डालनी है। शायद इसी आश्वस्ति की वजह से नींद भी आ गई।
यह सबसे कठिन समय नहीं है
नहीं, यह सबसे कठिन समय नहीं!
अभी भी दबा है चिड़िया की चोंच में तिनका
वह उड़ने की तैयारी में है !
अभी भी झरती हुई पत्ती
थामने को बैठा है हाथ एक
अभी भी भीड़ है स्टेशन पर
अभी भी एक रेलगाड़ी जाती है
गंतव्य तक
जहां कोई कर रहा होगा प्रतीक्षा
अभी भी कहता है कोई किसी को
जल्दी आ जाओ कि अब
सूरज डूबने का वक़्त हो गया
अभी कहा जाता है
उस कथा का आखिरी हिस्सा
जो बूढ़ी नानी सुना रही सदियों से
दुनिया के तमाम बच्चों को
अभी आती है एक बस
अन्तरिक्ष के पार की दुनिया से
लाएगी बचे हुए लोगों की खबर!
नहीं, यह सबसे कठिन समय है।
कविता जया जादवानी
कक्षा 8 (एनसीईआरटी)
इस बार दिल में बहुत चाह थी, केजीबीवी की उन लड़कियों के साथ काम करने की जिनके साथ उनकी कक्षा की द्क्षताओं पर कार्य किया जाना है। अभी तक उन लड़कियों के साथ ही काम किया जा रहा था जो अभी पढ़ने लिखने की बुनियादी दक्षताओं पर है। पिछले साल भर से हम बीकानेर के कस्तूरबा विद्यालयों के साथ कार्य कर रहे हैं। मन में कहीं उन लड़कियों के उपेक्षित रह जाने का मलाल रह जाता था जो पढ़ना लिखना सीख चुकी हैं और उनके साथ उच्चतर दक्षताओं पर काम किया जा सकता है।
बहरहाल हम अगले दिन केजीबीवी की आठवीं कक्षा में थे। लड़कियां फर्श पर चार कतारों में बैठी थीं। पहले एक फिर दूसरी, तीसरी व उसके पीछे चौथी कतार... इधर हमारे लिए दो कुर्सियाँ व दीवार के सहारे टेबल पर रखा हुआ ब्लैक बोर्ड था। मन में बैठक व्यवस्था को बदलने का ख्याल आया लेकिन अभी के लिए निकाल दिया। ज़रूरत पड़ने पर बदल देंगे। शिक्षिका ने शुरू किया, “आज हम पाठ – ये सबसे कठिन समय नहीं है पढ़ेंगे... पाठ का वाचन शुरू किया... अगले तीन मिनट में वाचन समाप्त हो गया। फिर टीचर ने अर्थ बताना शुरू किया, “इस कविता में कवयित्री ने यह संदेश दिया है कि...।अगले पाँच - सात मिनट में टीचर ने अपना अर्थ लड़कियों की तरफ उछाल दिया। सामने लड़कियां बैठी थीं एकदम चुप! खुली हुई आँखें, खुली हुई किताबें लगभग शून्य की ओर ...
मेरा मन दखल देने को हुआ। क्या यह महज एक पाठ है? जिसका वाचन हो और उसके बाद बच्चों के हाथ में एक व्याख्या टीचर द्वारा पकड़ा दी जाए। नहीं यह तो एक कविता है। इसका इस्तकबाल कविता की तरह ही होना चाहिए। इस्तकबाल तभी कर पाएंगे जब हम समझेंगे कि कोई कविता दरअसल चाहती क्या है?
कविता जब लिखी जाती है तो उसकी प्रत्येक लाइन के पीछे कवि का एक अटूट विश्वास होता है कि जब इसे कोई पढ़ेगा या सुनेगा तो उसके अपने मतलब भी निकलेंगे। चाहे पाठक कोई भी हो। और जब पाठक कोई 15 – 16 साल की किशोर उम्र का हो तो मतलबों में कल्पनाओं के और गाढ़े उजले रंगों की उम्मीद की जा सकती है। फिर जब हम किसी कक्षा में कविता के साथ पेश आते हैं तो क्यों कवि के उस भरोसे को तोड़ देते हैं। मुझे अब समझ में आ गया कि करना क्या है। जो भी हो मुझे कवि के भरोसे को अंत तक कायम रखना है कि अर्थ निर्माण की प्रक्रिया आखिर लड़कियों के स्तर पर ही होनी है। फिर हमारी क्या भूमिका है ? शायद हम माहौल कायम कर सकते हैं, स्वाधीनता, संवाद, परस्परता व सहयोग का।
मैंने लड़कियों से बात शुरू की
आपने कहानी व निबंध पढे हैं?”
हाँ
अच्छा ये बताओ कि इनमे व कविता में आपको क्या फर्क लगता है? ”
थोड़ी देर के लिए सन्नाटा रहा फिर एक लड़की ने बताया
कहानी सरल होती है। सुनते ही सीधे समझ आती है लेकिन कविता को समझने में दिमाग पर ज़ोर पड़ता है।
मुझे लगता है कि कविता में जो कठिनाई लड़कियों की है वह कहीं टीचर की व्याख्या व लड़कियों की खुद की समझ में टकराव तो नहीं। मैंने लड़कियों से कहा, “क्या आपने कबीर का यह दोहा सुन रखा है?”
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रोंदे मोए।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदूंगी तोए॥
सभी लड़कियों ने हाँ में जवाब दिया। मैंने कहा, “क्या इस दोहे का मतलब यही है कि मिट्टी कुम्हार से बातें कर रही है?”
नहीं सर, इसका मतलब यह नहीं बल्कि कुछ और है।
आपके अनुसार क्या मतलब है?”
इसमे कमजोर व्यक्ति यह कह रहा है कि उसका भी एक दिन वक़्त आएगा।
मैंने बात को पकड़ते हुए लड़कियों से कहा कि जिस प्रकार इस दोहे में लिखी हुई लाइनों के अलावा एक मतलब निकल रहा है वैसे ही जो कविता हम आज पढ़ने जा रहे हैं उसके भी अलग मतलब निकल सकते हैं जो हमें खुद को ही समझ आएंगे।
मैंने जया जदवानीकी इस कविता के शीर्षक को रखा
यह सबसे कठिन समय नहीं है
मुझे अचानक एक बात सूझी कि एक बार लड़कियों से बात करके यह तो पता किया जाए कि ये कठिन समय को किस रूप में समझती हैं? कठिन समय की क्या अवधारणा है? लड़कियों को थोड़ी देर आंखे बंद कर के बैठने के लिए कहा कि वे अपनी ज़िंदगी में किस वक़्त को बहुत मुश्किल समय मानती हैं? लड़कियों ने आँखें बंद की और दो तीन मिनट तक सोचती रहीं फिर आंखे खोल कर अपनी कॉपी में लिखना शुरू कर दिया। लिख लेने के बाद बारी थी सबके साथ शेयर करने की। लड़कियों ने बताना शुरू किया
कॉपी का काम पूरा नहीं है।
आँखें कमजोर है।
गणित की कॉपी गुम हो गई।
इस तरह से शुरुआत हुई। धीरे धीरे बात गहरी व गंभीर होती चली गई।
एक लड़की ने कहा, “मेरी दो बहने ससुराल चली गई हैं और मेरी भाभी बीमार रहती है। मेरी मम्मी को ही घर के सारे काम करने पड़ते हैं। मुझे लगता है यह बहुत कठिन समय है।
प्रियंका – “मुझे यह कविता थोड़ी सी कम समझ में आई, ये मेरा कठिन समय है।
सुनीता - कुछ दिन से मेरी तबीयत खराब है। मैं बहुत कठिन समय महसूस कर रही हूँ।
भाग्यश्री – “मेरी नज़र कमजोर है। मुझे कम दिखाई देता है। मेरे लिए यह बहुत कठिन समय है।
जैसे ही हस्तु बोलने के लिए खड़ी हुई उसने बोलते ही माहौल को गमगीन कर दिया, “मेरा एक बीस वर्ष का भाई था जिसकी कुछ समय पहले मौत हो गई। यह मेरे लिए बहुत ही कठिन समय है।यह कहते ही हस्तु रोने लग गई। उसके रोने का असर यह हुआ कि उसके आसपास की चार पाँच लड़कियां भी उसके साथ रोने लग गईं। जो नहीं रो रही थीं वो उन्हे चुप कराने में लग गईं। 5-7 मिनट तक यूँ ही गमगीन माहौल बना रहा।
लड़कियों को रुलाना बिलकुल उद्देश्य नहीं था। फिर भी इस गतिविधि से दो महत्वपूर्ण बाते हुईं। पहली यह कि इससे हम व शिक्षिका लड़कियों की वास्तविकता से परिचित हो रहे थे। दूसरा यह हुआ कि आगे जिस कविता पर काम किया जाना है उसकी भावभूमि तैयार लग रही थी। बिना देरी किए फिर से कविता का वाचन किया। वाचन के बाद मतलब पर बात नहीं की गई। इसे यह सोच कर छोड़ दिया कि अर्थ निर्माण का काम लड़कियों के स्तर पे हो। कविता के वाचन के पश्चात लड़कियों के चार समूह बनाकर कविता को पढ़ने व उस पर चर्चा करने को कहा गया। प्रत्येक समूह में एक एक सवाल भी दिया गया।
समूहों के काम के प्रस्तुतीकरण की बानगी इस प्रकार है -
समूह 1 – यह कठिन समय नहीं है यह बताने के लिए कविता में कौन- कौनसे तर्क प्रस्तुत किए गए हैं?
लड़कियों के उत्तर इस प्रकार थे
यह कठिन समय नहीं है यह बताने के लिए कविता में निम्नलिखित तर्क दिये हैं-
1. चिड़िया अपनी चोंच में तिनका दबाए उड़ने को तैयार है। क्योंकि वह नीड़ का निर्माण करना चाहती है।
2. डाली से गिरती पत्ती को थामने के लिए एक हाथ तैयार है जो उसे सहारा देना चाहता है।
3. एक रेलगाड़ी अब भी गंतव्य अर्थात पहुँचने के स्थान तक जाती है
4. अभी भी घर पर कोई किसी की प्रतीक्षा कर रहा है।
5. अभी भी नानी की कहानी का अंतिम महत्वपूर्ण हिस्सा बाकी है।
6. अभी भी एक बस अन्तरिक्ष के पार की दुनिया में जाने वाले लोगों में से बचे हुए लोगों की खबर लेकर आएगी।
इन सभी तर्कों से कवयित्री जया जादवानी यही कहना चाहती है कि अभी कठिन समय है लेकिन सबसे कठिन समय नहीं है, आगे पढ़ो और बढ़ो।
हो सकता है लड़कियां इन तर्कों को धारदार तरीके से न रख पा रही हों लेकिन इतना पक्का है कि वे कविता को पढ़ कर समझने की जद्दोजहद में लगी हैं।
समूह 2 – चिड़िया चोंच मे तिनका दबाकर उड़ने की तैयारी में क्यों है? वह तिनकों का क्या करती होगी?
यह सवाल जरूरत से ज्यादा साधारण है लेकिन लड़कियों ने जिस तरह से इसका जवाब रखा उस से यही समझ आता है कि लड़कियों ने कविता को समझा जरूर है।
लड़कियों का जवाब इस तरह से था
चिड़िया चोंच में तिनका दबाकर पेड़ व घरों तक ले जाती है और अपना घोंसला बनाती है। उसका घोंसला हवा व बरसात के साथ बह जाता है। वह फिर से तिनके तिनके लाकर बना लेती है। यह कठिन समय नहीं है कवयित्री हमें यह संदेश देती है कि हारना नहीं चाहिए, संघर्ष करना चाहिए।
समूह 3 - कविता में कई बार अभी भी का प्रयोग करके बात की गई है। अभी भी का प्रयोग करते हुए तीन वाक्य बनाइये और देखिए उसमे लगातार, निरंतर, बिना रुके चलनेवाले किसी कार्य का भाव निकलता है या नहीं ?
1. हमारे विद्यालय में सर अभी भी हैं।
2. अभी भी कक्षा आठ को सर हिन्दी के शब्द सिखा रहे हैं।
3. हम अभी भी कविता के बारे में लिख रहे हैं
इसमें प्रक्रिया यह रखी थी कि लड़कियों ने जो वाक्य बनाए उनमे कुछ अनगढ़ता थी। शिक्षिका लड़कियों के बोलने के बाद वाक्यों को ठीक करवाकर बोर्ड पर लिख देती।
समूह 4 – नहीं  अभी नहीं” को एक साथ करके तीन वाक्य लिखिए और देखिए इनके पीछे क्या भाव छुपे हैं?
लड़कियों की प्रतिक्रियाएँ इस प्रकार थीं
1. मेरी मम्मी कह रही है कि तुझे पढ़ाई छोड़नी है। नहीं, मुझे अभी पढ़ाई नहीं छोड़नी है।
2. मेरे पापा जी कह रहे हैं कि मुझे खेत का काम करना है। नहीं, मुझे अभी खेत का काम नहीं करना है।
3. मेरी बहन कह रही है कि देखो टीवी में कितनी अच्छी फिल्म चल रही है। नहीं, मुझे अभी फिल्म नहीं देखनी है।
इस सवाल में रोचक बात यह रही कि लड़कियों को नहींअभी भीके साथ वाक्य बनाने थे लेकिन वे इतनी जल्दबाज़ी में थी कि अभी भीकी जगह अभी नहींका प्रयोग कर गईं।
कविता पर काम करते हुए यह समझ आया कि इस कार्यवाही में ज़्यादातर समय लड़कियां ही सक्रिय दिखाई दे रही थी। टीचर की व्यस्तता इतनी ही थी कि जहां उसे लगता था कि यहाँ दखल की जरूरत है वहीं दखल दिया ।
अब लड़कियों को होम वर्क देने का वक़्त था। होम वर्क स्कूली व्यवस्था का जरूरी हिस्सा है। हम सोच रहे थे कि यह किस तरह का हो? लड़कियां कविता के अर्थ की और गहरी परतों को समझें, कविता की समझ को पाठ से आगे ले जाकर कल्पनाशीलता का प्रयोग करते हुए कुछ नया सृजन करें इस हेतु लड़कियों को समूह में ही काम दिया गया। यह काम उन्हें आवासीय समय में करना था। इस बार नए सिरे से चार समूह बनाए गए। तीन समूह ऐसे थे जिनमें ऐसी लड़कियां थी जो अच्छे से लिख सकती थीं। इन लड़कियों को कहा गया कि आप घर के बड़ों द्वारा सुनाई, पढ़ी हुई या स्वरचित कहानी लिखें जिसमें कवयित्री द्वारा दिया हुआ संदेश हो। एक समूह को कहा गया कि इस कविता में कहीं आया है, “अभी भी आती है एक बस अन्तरिक्ष की पार की दुनिया सेकल्पना से चित्र बनाइये कि वह बस कैसी दिखती होगी?
कहानी 1
दामोलाई नामक गाँव में एक लड़की रहती थी। वह बहुत सुंदर थी व उसके लंबे - लंबे बाल थे। वह पढ़ना चाहती थी लेकिन उसके मम्मी पापा उसको पढ़ाना नहीं चाहते थे। वह पाँच भाई- बहन थे। उसके चारों भाई स्कूल जाते थे। वह अपने मम्मी पापा से रोज कहती कि मुझे स्कूल भेज दो लेकिन उसके मम्मी पापा नहीं माने। लड़की के चारों भाई उसे स्कूल ले जाना चाहते थे, उन्होने भी अपने मम्मी पापा को खूब समझाया लेकिन वे नहीं माने। उन्होने सारी बात अपनी टीचर को बताई। टीचर ने उसे सलाह दी हम तुम्हारी बहन का दाखिला करा लेंगे तुम अपनी बहन को घर पर ही पढ़ा लेना। पेपर के वक़्त यहाँ ले आना। उसके भाइयों ने यह बात मान ली। उन्होने यह खुशखबरी अपनी बहन को बताई। इससे वह बहुत खुश हुई। उसने घर पर बहुत पढ़ाई की और सहेली के घर जाने के बहाने से पेपर दिये। वह अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पर आई। टीचरों ने खुश होकर पार्टी की तो वहाँ पर मुख्यमंत्री ने उस लड़की को इनाम में लैपटाप दिया। उसके मम्मी पापा ने मिलकर अपने बच्चों को आशीर्वाद दिया।
कहानी 2
एक बार शूरसेन नाम का एक राजा था। उसके तीन बेटियाँ थी। उनका नाम चारुलता, चंद्रलता और स्वर्णलता था। एक बार तीनों बहने जंगल में घूमने निकलीं तभी अचानक तूफान आ गया। तीनों बहने जंगल में भटक गई। हिम्मत से आगे बढ़ीं उनको सामने एक महल दिखाई दिया। वे उस महल में चली गईं। तीनों ने रात उसी महल में बिताई। सुबह तीनों बाग में घूमने चली गईं। चारुलता ने उस बाग से एक फूल तोड़ लिया। फूल तोड़ते ही एक राक्षस प्रकट हुआ। राक्षस ने कहा, “मैं तीनों को मार डालूँगा तुमने मेरा फूल तोड़कर अच्छा नहीं किया।चारु राक्षस से माफी मांगने लगी लेकिन राक्षस नहीं माना। राक्षस ने कहा तुम्हें मेरी एक शर्त माननी होगी। राक्षस ने कहा तुमको यहीं रुकना होगा। चारु मान गई और दोनों बहनों को वापस भेज दिया। कई दिन बीतने पर चारु एक दिन पिता की याद में रोने लगी। राक्षस को दया आ गई। चारुलता को पिता के पास वापस भेज दिया। वह अपने पिता के पास प्रसन्न होकर रहने लगी। एक दिन चारुलता को सपना आया कि राक्षस बहुत बीमार है। चारु ने पिता से कहा कि मुझे राक्षस के पास छोड़ दो। उसके पिताजी मान गए। चारु राक्षस के पास गई और चारु ने देखा राक्षस वास्तव में बीमार है। चारु ने कहा उठो मैं आपको बहुत चाहती हूँ और आपके साथ शादी करना चाहती हूँ। इतना कहते ही राक्षस एक राजकुमार बन गया। राजकुमार ने कहा कि मैं भी एक दिन जंगल में भटक गया था। मैंने एक जादूगरनी का कहना नहीं माना तो उसने मुझे शाप दे दिया कि तुम्हें जब भी चाहने वाली लड़की मिलेगी तभी तुम असली रूप में आओगे। चारु उस राजकुमार को अपने राज्य में ले गई। चारु के पिताजी ने दोनों की शादी कर दी। वे दोनों सुखपूर्वक रहने लगे।
थैंक यू , गमले में मिट्टी हो तो साफ करना, लिखने में गलती हो तो माफ करना।
कहानी 3
एक बार मीना नाम की लड़की थी। उसके माता पिता उसको पढ़ना नहीं चाहते थे। वह जंगल से लकड़ियों का गट्ठर लेकर आती तो बीच में स्कूल पड़ता था। वह लकड़ियों का गट्ठर रखकर स्कूल चली गई। उसने देखा बहन जी कक्षा में पढ़ा रही थी। वह खड़ी होकर सुनने लगी। बहन जी दो का पहाड़ा सुना रही थी। दो एकम दो, दो दूनी चार, दो तिया छ: । मीना और मिट्ठू ने ध्यान से सुना। पहाड़ा खत्म होने पर जल्दी जल्दी घर के लिए रवाना हो गए। घर जाने पर वह हर चीज़ को गिनती रहती। वह अपने पापा से पढ़ाने को कहती तो उसकी मम्मी पहले ही कह देती कि लड़कियां पढ़ती नहीं हैं, घर का काम करती हैं। एक दिन वह मिट्ठू से बोली कि तुम पहले स्कूल जाओगे बाद में मुझे पढ़ाओगे। मिट्ठू स्कूल गया। वह पढ़ कर मीना को सिखाता। एक दिन मीना पढ़ रही थी तभी एक चोर दबे पाँव आया और एक मुर्गी को लेकर भाग गया। मीना ने मुर्गियों को गिना तो एक मुर्गी नहीं मिली। उसने नज़र इधर उधर दौड़ाई तभी उसने आदमी को देखा। उसने शोर मचाया। गाँव के लोग इकट्ठा हो गए। उस चोर को पकड़ कर खूब धुनाई की। सभी गाँव वालों ने मीना के पापा से कहा कि आपकी बेटी बहुत होशियार है, आप उसे पढ़ाते हैं? तभी उसके पापा ने पूछा कि किससे सीखा? उसने कहा मिट्ठू से। अब वह भी स्कूल जाने लगी।

लड़कियों ने जो कहानियाँ लिखी हैं और जो जो चित्र बनाए हैं वह अभी एक शुरुआत है जो लेखन की उस जड़ता को तोड़ती है जिसे हमने एक दिन पहले लड़कियों की कॉपी में देखा था। जब हम लड़कियों की कॉपी देख रहे थे तो एक बात सामने आई कि सभी लड़कियों के कॉपी में लिखे जवाब अक्षरश: एक जैसे थे। गणित, विज्ञान, सामाजिक या भाषा विषय कोई भी हो कोई फर्क नहीं पड़ता। जब सबके जवाब ऐसे हूबहू ही होने हैं तो फिर जाँचने व न जाँचने में क्या फर्क पड़ता है। ऐसा इसलिए हो रहा था क्योंकि सभी लड़कियां जवाब पास बुक्स में से कॉपी करके लिख रहीं थी या फिर टीचर द्वारा जवाब बोर्ड पर लिख दिये जाते थे जिन्हें लड़कियां अपनी कॉपी में उतार लेती थीं। पूरी प्रक्रिया में लड़कियों की मौलिक उद्भावनाओं के लिए कोई गुंजाइश नहीं थी। आज लड़कियों के साथ जो काम हुआ उससे चाहे शुरुआत ही हुई लेकिन लड़कियों की मौलिक सोच को स्थान मिला है। भले ही आखिर की दो कहानियाँ उन्होने खुद नहीं रची हैं लेकिन उनके प्रस्तुतीकरण का सोच मौलिक है इससे उनमे एक भरोसे की भी उम्मीद जागी है कि वे खुद सोच सकती हैं, कर सकती हैं।

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दलीप वैरागी 
09928986983 

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